भगवत गीता 01/4

।।जय श्री कृष्णा।।।।जय श्री कृष्णा।।।।जय श्रीकृष्णा।।

मूल श्लोकअत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।

युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः

।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।

।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।

अर्थ:

इस सेना में महान धनुर्धारी भीष्म, अर्जुन के समान योद्धा, युयुत्सु, विराट, और द्रुपद जैसे महारथी भी शामिल हैं।

इस श्लोक से एक-एक शब्द लेते हैं, और बच्चों के लिए 

कुछ उदाहरण बनाते हैं। मतलब के साथ।

।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।

1. अत्र: यहाँ।

2. शूरा: वीर योद्धा।

3. महेष्वासा: महान धनुर्धारी (जो तीर-कमान चलाने में कुशल हो)।

4. भीमार्जुनसमा: भीम और अर्जुन के समान (शक्ति और कौशल में)।

5. युधि: युद्ध में।

6. युयुधानः: युयुत्सु (धृतराष्ट्र का पुत्र, जो युद्ध में पाण्डवों का साथ देता है)।

7. विराटश्च: और विराट (मatsya नरेश, जिनके यहाँ पाण्डव अज्ञातवास में रहे)।

8. द्रुपदश्च: और द्रुपद (पांचाल नरेश, द्रौपदी के पिता)।

9. महारथः: महारथी (महान योद्धा, जो अकेले हजारों योद्धाओं का सामना करने में सक्षम हो)।



नीचे श्लोक 1.4 के प्रत्येक शब्द के साथ एक सरल उदाहरण और उससे जुड़ी सीख दी गई है, ताकि बच्चे अपनी जीवन शैली में इनसे प्रेरणा ले सकें:

।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।


।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।

1. अत्र (यहाँ):

उदाहरण:

जब स्कूल में शिक्षक कोई नई बात सिखाते हैं, तो हमें "यहाँ" यानी उस समय पूरी तरह ध्यान देना चाहिए। पुस्तक से ही ज्ञान का प्रसार प्रारंभ होते हैं।

सीख:

जहाँ भी हो, वहाँ पूरी तरह उपस्थित रहो। अपने वर्तमान पर ध्यान दो, ताकि जीवन में कोई भी मौका न चूके।

क्योंकि, वर्तमान ही सिर्फ तुम्हारे हाथ में है।

2. शूरा (वीर योद्धा):

उदाहरण:

अगर परीक्षा में कठिन सवाल आएं, तो घबराने के बजाय वीरता से स्थिरता का सामना करना चाहिए। ताकि मनोयोग रहे।

सीख:

सच्चा शूरवीर वह है, जो डर को हराकर समस्याओं का समाधान करता है। डरने के बजाय बहादुरी दिखाओ।

क्योंकि ऐसी स्थिति में मनोबल टूट सकता है।

3. महेष्वासा (महान धनुर्धारी):

उदाहरण:

जैसे एक धनुर्धारी अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करता है, वैसे ही हमें अपनी पढ़ाई या किसी भी काम में ध्यान लगाना चाहिए।

सीख:

सफलता के लिए एकाग्रता और कौशल जरूरी है। हमेशा अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखो।

4. भीमार्जुनसमा (भीम और अर्जुन के समान):

उदाहरण:

भीम ताकतवर थे और अर्जुन कुशल धनुर्धारी। हमें भी अपनी शारीरिक ताकत और दिमागी कौशल को बढ़ाना चाहिए।

और समय का सही उपयोग करना चाहिए।

सीख:

शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनो। दोनों का सही उपयोग करना सीखो।

5. युधि (युद्ध में):

उदाहरण:

जैसे भीम और अर्जुन ने युद्ध में साहस दिखाया, वैसे ही हमें अपने जीवन के छोटे-छोटे संघर्षों में साहस दिखाना चाहिए, जैसे स्कूल की प्रतियोगिता या कोई अन्य चुनौती मे योगदान लेना चाहिए।

सीख:

हर संघर्ष को साहस और धैर्य से जीतना सीखो। हारने से घबराओ नहीं।

6. युयुधानः (सात्यकि, जो मददगार थे):

उदाहरण:

अगर तुम्हारा दोस्त मुश्किल में है, तो उसकी मदद करो। जैसे सात्यकि(अर्जुन के शिष्य ) ने पाण्डवों का साथ दिया था।

सीख:

सच्चा इंसान वह है, जो दूसरों की मदद करता है। हमेशा एक अच्छे दोस्त बनो। और सच्चे दोस्ती का कदर करो।

7. विराटश्च (विराट):

उदाहरण:

विराट ने पाण्डवों को अज्ञातवास में सहारा दिया। हमें भी जरूरतमंद लोगों को सहारा देना चाहिए।

सीख:

दूसरों की मदद करना एक महान गुण है। सेवा करने से तुम्हारी प्रतिष्ठा बढ़ती है।

(7. विराटश्च (विराट): इस विषय में छोटी सी जानकारी)

महाभारत के अनुसार, पाण्डवों ने अपने 12 वर्षों के वनवास के बाद एक वर्ष का अज्ञातवास बिताया। इस अज्ञातवास के दौरान, पाण्डवों को अपनी पहचान छुपाए रखनी थी, ताकि उन्हें पुनः 12 वर्षों के वनवास का सामना न करना पड़े।

इस अवधि में पाण्डवों ने राजा विराट के दरबार में शरण ली। विराट राज्य का नाम मत्स्य देश था, और राजा विराट ने अनजाने में पाण्डवों को सहारा दिया। पाण्डवों ने अपनी पहचान छुपाने के लिए अलग-अलग रूप धारण किए:

1. युधिष्ठिर ने कंक नाम के ब्राह्मण के रूप में राजदरबार में सभापति का काम किया।

2. भीम ने बलभद्र नाम से राजमहल के रसोइए और कुश्ती प्रशिक्षक का रूप धारण किया।

3. अर्जुन ने बृहन्नला नाम से नृत्य और संगीत सिखाने वाले व्यक्ति का रूप लिया।

4. नकुल ने ग्रन्थिक के नाम से घोड़ों की देखभाल की।

5. सहदेव ने तन्तिपाल के नाम से गायों की देखभाल की।

6. द्रौपदी ने सैरंध्री नाम से रानी सुदेष्णा की दासी के रूप में काम किया।

अज्ञातवास के दौरान राजा विराट ने अनजाने में इन सभी को सहारा दिया। यह घटना सिखाती है कि हमें जरूरतमंदों को बिना उनकी पहचान जाने भी मदद करनी चाहिए। राजा विराट का यह कार्य न केवल उनकी उदारता और सहृदयता का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सहायता करने में पहचान का कोई मोल नहीं होता।

8. द्रुपदश्च (द्रुपद):

उदाहरण:

द्रुपद ने अपने बच्चों को शिक्षा और समर्थन दिया। हमें भी अपने परिवार और दोस्तों को सपोर्ट करना चाहिए।

सीख:

परिवार और दोस्तों के साथ हमेशा खड़े रहो। यही तुम्हारी ताकत हैं।

9. महारथः (महारथी):

उदाहरण:

एक महारथी कभी हार नहीं मानता। अगर गणित का कोई सवाल बार-बार गलत हो रहा है, तो अभ्यास करते रहो।

सीख:

सच्चा महारथी वह है, जो बार-बार कोशिश करता है और अंत में सफल होता है। मेहनत और धैर्य से कभी पीछे मत हटो।

समग्र सीख:

हर शब्द हमें कुछ न कुछ नया सिखाता है।

जीवन में वीरता, एकाग्रता, साहस, और दूसरों की मदद करने का महत्व समझो।

छोटी-छोटी बातों को अपनाकर, हम महान बन सकते हैं।

।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।


।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।जय श्री कृष्णा।।

मानव ता और महानता 

सरोवर के सामान 

जब तक ना कमल खिले 

उद्देश्य असमान

मानव हृदय जब तक ना हो 

पूर्ण सरोवर सामान 

मानव कैसे बन सकता है 

मानवता में महान 


मुश्किल नहीं प्रेम करना 

मुश्किल नहीं त्याग भरना 

मुश्किल नहीं बनने झरना 

मुश्किल नहीं कुछ भी करना 


प्रेरणा मन में जब तक ना हो 

मन बनाए व्यवधान 

मानवता से ही मिट जाते हैं 

मन के शैतान


मानव ता और महानता 

सरोवर के सामान 

जब तक ना कमल खिले 

उद्देश्य असमान

।।जय श्री कृष्णा।।

                  

।।ZARRA SINGH।।

                   ।।विशेष आग्रह।।

"प्रिय बच्चों, आप जब अपनी उम्र से बड़ी हो जाओगे और जीवन के अनुभवों से गुजरेंगे, तब अवश्य संपूर्ण भगवद्गीता का गहराई से अध्ययन करें। यह ज्ञान न केवल आपके जीवन को सही दिशा देगा, बल्कि समाज में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाने में भी सहायक होगा।"   

"अगर अगले 20 सालों में 20% बच्चे भी गीता का ज्ञान अपनाते हैं, तो भारत का भविष्य उज्जवल होगा।"आप भी सहायक बनिए। कम से कम 20 बच्चों को आप प्रदान कर दीजिए इस लेख को।।

आज का बीच कल फल बनेगा। 

कल का बीज फिर से पेड़ बनेगा। 

आजअगर रोपण ना किया तो। 

कल का फल कैसे मिलेगा। 

                        ।। ZARRA SINGH ।।

फिर मिलते हैं नई-नई खोज के साथ।। आपके लिए।।

भगवत गीता के अध्याय 1, श्लोक 05. के विशेष पर्व में।।

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