भगवत गीता श्लोक:03
श्लोक:03
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥
अर्थ:
हे आचार्य, देखिए पाण्डु के पुत्रो की इस विशाल सेना को,
जिसे आपके ही बुद्धिमान शिष्य, द्रुपदपुत्र (धृष्टद्युम्न) ने व्यवस्थित किया है।
कहानी:
अगर मै अपने आप को एक बच्चे के तौर पर देखूँ तो मै इस श्लोक को नीचे दिए गए विवरण द्वारा समझना चाहूँगा। मैं खुद को पाण्डवों की तरह महसूस करता हूं, जो हमेशा सही रास्ता चुनते थे। तो आइये मै यानी Zarra Singh के दृष्टिकोण से। बच्चों के संदर्भ मे भगवत गीता का तीसरा श्लोक का सार
1. पश्यैतां (पश्य = देखो, ऐतां = इनको)
"पश्य" का मतलब है देखो। जैसे पाण्डवों ने युद्ध से पहले अपनी सेना और स्थिति निरीक्षण किया था, वैसे ही मुझे भी अपनी हालत और आसपास की चीजों को देखना चाहिए। मुझे देखना है कि मुझे क्या करना है और क्या सुधारने की जरूरत है। यही तरीका है, जो पाण्डवों ने सफलता पाने के लिए अपनाया था।
2. पाण्डुपुत्राणामाचार्य (पाण्डु के पुत्रों के आचार्य)
मुझे हमेशा एक अच्छा मार्गदर्शन चाहिए। पाण्डवों को द्रोणाचार्य से बहुत कुछ सीखने को मिला था। जैसे वे अपने गुरु से सही बातें सीखते और समझते थे, वैसे ही मुझे भी अपने बड़े लोगों से सीखना चाहिए।
3. महतीं चमूम् (महान सेना)
पाण्डवों के पास एक बड़ी और ताकतवर सेना थी, लेकिन मेरे पास भी मेरा परिवार और मेरे दोस्त हैं, जो मेरी मदद करते हैं। जब मैं किसी मुश्किल में होता हूं, तो वे मुझे सहारा देते हैं और मुझे सही रास्ता दिखाते हैं।
4. व्यूढां (योजना या व्यवस्था)
"व्यूढां" का मतलब है योजना। मुझे भी अपनी जिंदगी के लिए एक अच्छी योजना बनानी चाहिए। पाण्डवों ने युद्ध के लिए अच्छी योजना बनाई थी, मुझे भी अपनी सफलता के लिए कोई ठोस योजना बनानी चाहिए।
5. द्रुपदपुत्रेण (द्रुपद के पुत्र द्वारा)
पाण्डवों के गुरु ने उन्हें जो ज्ञान दिया, उसे वे जीवन में इस्तेमाल करते थे। मुझे भी जो कुछ सिखाया गया है, उसे अपनी जिंदगी में लागू करना चाहिए। इससे मै हर मुश्किल से आसानी से बाहर निकल सकता हूं।
6. तव शिष्येण धीमता (तेरे बुद्धिमान शिष्य द्वारा)
यहां पर "तेरे बुद्धिमान शिष्य द्वारा" का मतलब है कि जैसे द्रुपद के पुत्र ने अपने गुरु से सीखी हुई बुद्धिमानी और शिक्षा का सही उपयोग किया था, मुझे भी वही करना चाहिए। जब मुझे किसी मुश्किल का सामना करना हो, तो मुझे अपनी समझ और सिखाई गई बातों का उपयोग करना चाहिए, ताकि मैं सही निर्णय ले सकूं और सफलता प्राप्त कर सकूं।
संक्षिप्त विवरण:
पाण्डवों ने हमेशा अपने गुरु से सही मार्गदर्शन लिया, अच्छा साथी चुना, और एक ठोस योजना बनाई। मुझे भी यही करना चाहिए – अच्छे लोगों से सीखना, एक योजना बनाना, और अपनी समझ का सही इस्तेमाल करना। जब मैं यह करूंगा, तो किसी भी मुश्किल को पार कर सकता हूं।
शिक्षा:
"जैसे पाण्डवों ने योजना और गुरु से मार्गदर्शन लेकर सफलता पाई, वैसे ही मैं भी सही सोच और सही दिशा में आगे बढ़ सकता हूं।"
अब मुझे यह समझ में आता है कि जीवन में सफल होने के लिए सही मार्गदर्शन, अच्छे लोग और एक ठोस योजना जरूरी है।
Zarra Singh
मन का उजाला धीरे-धीरे बढ़ चला है
हर एक कण में गुरु रहते है लगने लगा है
अंधेरा कभी मेरे मन में गुरु होने ना दे
गुरु परम, गुरु धर्म, उजाला खोने ना दे
शरण आया हूं, गुरु जी के
रह जाऊं मैं पास उनके
गुरु थामे रहे हाथ मेरे
साथ हमेशा मेरे प्रेम रहे,
।।भगवत गीता का मूल रचना।।
श्लोक:03
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥
अर्थ:
हे आचार्य, देखिए पाण्डु के पुत्रों की इस विशाल सेना को,
जिसे आपके ही बुद्धिमान शिष्य, द्रुपदपुत्र (धृष्टद्युम्न) ने व्यवस्थित किया है।
।।फिर मिलते हैं भागवत गीता का चौथा श्लोक के साथ
आपका जर्रा सिंह।।
।।ZARRA SINGH।।
।।विशेष आग्रह।।
"प्रिय बच्चों, आप जब अपनी उम्र से बड़ी हो जाओगे और जीवन के अनुभवों से गुजरेंगे, तब अवश्य संपूर्ण भगवद्गीता का गहराई से अध्ययन करें। यह ज्ञान न केवल आपके जीवन को सही दिशा देगा, बल्कि समाज में अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाने में भी सहायक होगा।"
"अगर अगले 20 सालों में 20% बच्चे भी गीता का ज्ञान अपनाते हैं, तो भारत का भविष्य उज्जवल होगा।"आप भी सहायक बनिए। कम से कम 20 बच्चों को आप प्रदान कर दीजिए इस लेख को।।
आज का बीच कल फल बनेगा।
कल का बीज फिर से पेड़ बनेगा।
आजअगर रोपण ना किया तो।
कल का फल कैसे मिलेगा।
।। ZARRA SINGH ।।
फिर मिलते हैं नई-नई खोज के साथ।। आपके लिए।।
भगवत गीता के अध्याय 1, श्लोक 04. के विशेष पर्व में।।



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